Movie Review: Begum jaan

Film: Begum jaan

Release date: 14 April 2017

Cast: Vidya balan, Gauahar khan, Ashish vidyarthi, Naseeruddin shah, Rajit kapoor, Chunkey pandey

Story: Srijit mukherji

Direction: Srijit mukherji

Language: Hindi

कहानी-

“जब-जब लकीरें खींची गईं, तब-तब नफरत और हिंसा का सैलाब आया है” कहानी का सार यही है। फिल्म एक ऐसे ही विद्रोह की कहानी है। सन् 1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन के दौरान जब रेडक्लिफ लाइन बेग़म जान (विद्या बालन) के कोठे से गुजरती है तो वह उस कोठे को जो कि सिर्फ कोठा नहीं उसके लिए उसका घर था उसे खाली करने से साफ़ इंकार कर देती है। उसकी जिद और विद्रोह के आगे जब सैन्य अधिकारीं घुटने टेक देतें हैं तब मुस्लिम लीग और इंडियन नेशनल कांग्रेस के लीडर, इलियास (रजित कपूर) और हर्षवर्धन (आशीष विद्यार्थी) यह काम वहाँ के लोकल गुंडे कबीर (चंकी पांडे) को सौंपते हैं। अपने घर को बचाने के लिए बेगम जान अपने घर की अन्य महिलाओं के साथ बन्दूक उठा लेती है और अंत तक कबीर और उसके आदमियों का सामना करती है। इसके आगे की कहानी जानने के लिए आपको सिनेमाघरों का रुख करना पड़ेगा।

 
Review-
कहानी की शुरुवात में एक दृश्य आता है जिसमें कनॉट प्लेस पर कुछ लड़के बस में सवार होकर उसमें बैठे एक युवक से मारपीट करते हैं और उसके साथ मौजूद लड़की का रेप करने की कोशिश करते हैं। यह देखकर करीब 70 साल की एक बूढ़ी महिला खुद निर्वस्त्र होकर उस लड़की के सामने आ जाती है जिसे देखकर वह लड़के घबरा जाते हैं। एक ऐसा ही दृश्य फिल्म के अंत में देखने को मिलता है। दोनों ही दृश्य अंदर तक झंझोड़ कर रख देतें हैं। फिल्म का मुख्य हिस्सा मजबूरी और दरिंदगीं का शिकार हुईं महिलाओं के जीवन की तरफ इशारा करता है। बनारस में शादी होने के बाद जब बेगम जान को किसी कोठे पर बेंच दिया जाता है तब वह लखनऊ के राजा (नसीरुद्दीन शाह) की मदद से एक ऐंसा ही कोठा खोलती है और अपने जैसी कुछ महिलाओं का सहारा बनकर एक सशक्त किरदार के रूप में उभरती है। जो हुक्का पीती है, शराब पीती है और जरुरत पड़ने पर मर्द को अपने पैरों तले रौंद देती है। 

पटकथा- कहानी अच्छी है। और बेहतर हो सकती थी। कुछ दृश्य हटाए जा सकते थे। यह फिल्म 2015 में आयी बंगाली फिल्म ‘राजकहानी’की रीमेक है। कहानी को सृजित मुखर्जी ने लिखा है और स्क्रीनप्ले में उनका साथ दिया है कौसर मुनीर ने। डॉयलोग्स अच्छे एवं प्रभावशाली हैं। 

निर्देशन- फिल्म का निर्देशन राजकहानी के ही निर्देशक सृजित मुख़र्जी ने किया है जो कि अच्छा है। सिनेमेटोग्राफी शानदार है। हर किरदार का अच्छे से इस्तेमाल किया है। सृजित मुख्य रूप से बंगाली सिनेमा के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने पहली बार किसी हिंदी फिल्म का निर्देशन किया है। 

अभिनय- विद्या बालन का अभिनय काबिल-ए-तारीफ़ है। उन्होंने निश्चित तौर पर बेगम जान के किरदार में जान डाल दी। नसीरुद्दीन शाह का किरदार काफी छोटा है जिसे उन्होंने बहुत खूबसूरती से पूरा किया। राजेश शर्मा हमेशा की तरह बेहतरीन लगे। दो किरदार जिन्होंने अपनी तरफ आकर्षित किया है वह हैं गौहर खान और चंकी पांडे। दोनों ने कमाल का अभिनय किया है। आशीष विद्यार्थी और रजित कपूर भी ठीक लगे। 

म्यूजिक- म्यूजिक अच्छा है। कुछ गाने हालाँकि जरुरी नहीं थे पर ठीक हैं। आज़ादियाँ और वो सुबह खूबसूरत हैं। 
फिल्म विभजान के दौरान आयी परेशानियों को उजागर नहीं करती। फिल्म पूरी तरह बेगम जान और उसके कोठे में रह रहीं औरतों के जीवन पर केंद्रित है। दमदार अभिनय और साधारण किन्तु प्रभावशाली कहानी के लिए फिल्म एक बार तो जरूर देखी जा सकती है। 

AKB rating- 3.5/5

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