कभी-कभी मैं जिंदगी को आसमाँ में तैरते हुए पंछियों की भांति महसूस करता हूँ। शांत, उन्मुक्त आसमाँ में उसे उड़ता देखकर लगता है जैसे वहाँ शायद वह अमर हो जाती होगी। हर पीड़ा हर बंधन से मुक्त। और वह पल मेरे लिए अविस्मरणीय हो जाता है।
कभी-कभी मैं जिंदगी को आसमाँ में तैरते हुए पंछियों की भांति महसूस करता हूँ। शांत, उन्मुक्त आसमाँ में उसे उड़ता देखकर लगता है जैसे वहाँ शायद वह अमर हो जाती होगी। हर पीड़ा हर बंधन से मुक्त। और वह पल मेरे लिए अविस्मरणीय हो जाता है।
क्या ख़ूब लिखा आपने..हर इंसान की इक्षा बिलकुल यही है आज कल👌🏻
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Shukriya! Haan ji!
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