चलो फिर से मोहब्बत करते हैं। थामते हैं हाथ एक दूसरे का।इस बार कभी न छोड़ने के लिए। गुज़रते हैं फिर उन्हीं सकरी गलियों से जहाँ अक्सर भीड़ कम हुआ करती थी। बैठकर किसी चैराहे पे जहाँ नफ़रत मयस्सर है, छिड़कते है उसपर कुछ मोहब्बत के छींटे। जलाने को, दिखाने को कि मोहब्बत अगर रूमानी हो तो इतनी आसानी से नहीं मरती। फिर बैठते हैं किसी साहिल किनारे, सुनते हैं किसी गीत को जो सिर्फ खामोशियों में सुनाई देता है। थोड़ा और बढ़ाते हैं हमारे इश्क़ का दायरा, उस डूबते सूरज की लाल हल्की रौशनी को हमारी मोहब्बत का गवाह बनाने के लिए। मचाते हैं हलचल किसी शांत सी बहने वाली नदी में, कूंदकर, बिना किसी कश्ती के सहारे। डूबने को, निकलने को, उसके बाद चूमने को उस ओस की तरह दिखने वाली बूँद को तुम्हारे जिस्म पर अक्सर ठहर जाया करती है। करते हैं आज़ाद एक-दूसरे को, इश्क़ की इंतिहा तक पहुँचकर। जो मुश्किल है, नामुमकिन है। संभलते हैं, बिखरते हैं, एक बार फिर। चलो फिर से मोहब्बत करते हैं।
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i am speechless…i can feel the lines 🙂
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Woh! It means a lot❤ thank you so much😊
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no really…you deserve good comments 🙂
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😇😇
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Amit I had nominated you for a bunch of awards please see to them… Tumhara intezaar kar rahe hai woh😂✌
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Thanku so much utkarsh…will respond to them as soon as possible😊😊
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Ur welcome 😉
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Wow…..beautiful 👌🏻
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Thanks a lot😊
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🙌 Speechless
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Overwhelmed😊😊
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